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दस फीट लंबे साफे को तीस सेकेंड में पगड़ी का रूप देकर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव यह जता देते हैं कि अलवर में उनके चुनावी मुकाबले को बाहरी बनाम स्थानीय का रूप देना बेमानी है। इस लोकसभा सीट के लिए हो रहे संघर्ष में भूपेंद्र यादव को उनके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के ललित यादव बाहरी उम्मीदवार बता रहे हैं, लेकिन खुद भूपेंद्र यादव के लिए यह कोई मुद्दा ही नहीं है।
उनके पास यह बताने के लिए बहुत कुछ है कि अलवर उनके लिए नई जगह नहीं है। वह इस संसदीय क्षेत्र के लंबे समय तक प्रभारी भी रहे हैं और उनकी दो बहनें भी यहीं रहती हैं। ललित यादव मौजूदा विधायक हैं और इस भरोसे उन्हें कड़ी चुनौती देने का दावा कर रहे हैं कि इस सीट पर 11 बार उनकी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव जीत चुका है।
शुक्रवार को भी उनका दिन बीस से अधिक छोटी-बडी सभाओं, सुबह सैर पर चर्चा, चैंबर आफ कामर्स और इंडस्ट्री में प्रबुद्धजन के साथ संवाद के साथ बीता। सिलसिला सुबह छह बजे शुरू हुआ और रात नौ बजे तक चलता रहा। इसके बाद अगले दिन की तैयारी के लिए प्रचार की कमान संभाल रहे लोगों के साथ लंबी बातचीत।
अहम बात यह भी है कि सौ किलोमीटर से अधिक के प्रचार अभियान के दौरान उनके चुनाव प्रबंधकों की ओर से तैयार किया गया कार्यक्रम 15 मिनट से अधिक इधर से उधर नहीं हुआ। सभाएं अगर लंबी खिंची तो भूपेंद्र यादव ने अंतराल घटा दिया। नाश्ता-खाना, सब इसी दौरान और चाय कार्यकर्ताओं के साथ कभी भी।
फल-सब्जी मंडी और आढ़त में उन्हें काजू-बादाम से तौलने की तैयारी थी तो कार्यकर्ताओं ने उत्साह में दो सौ किलो सामग्री मंगा ली। भूपेंद्र यादव पूरे 90 किलो के भी नहीं हैं। आयोजकों से पूछा गया कि दो सौ किलो काजू-बादाम मंगाने की क्या जरूरत थी तो उनका जवाब था-न वोट कम पड़ने चाहिए, न काजू-बादाम। इस बार दो गुने वोट से जीत दिलानी है।