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शवों को जलाने के लिए करते हैं रात का इंतजार, बांग्लादेश सीमा के पास चोरी छिपे होता है अंतिम संस्कार
हमारे देश में एक ऐसा भी गांव है, जहां पर अगर किसी की मौत हो जाती है तो उसे अंतिम संस्कार के लिए रात तक का इंतजार करना पड़ता है। जी, यह बिल्कुल सत्य है। इस गांव का नाम है बाघमारा, जो कि मेघालय राज्य के दक्षिण गारो हिल्स जिले में भारत-बांंग्लादेश की सीमा के पास है। यहां पर किसी हिंदु परिवार के किसी प्रियजन की मौत हो जाती है तो उनको अंतिम संस्कार के लिए रात तक इसका इंतजार करना पड़ता है। यहां के लोगों ने हर जगह अपील की, प्रशासन से लेकर सरकार तक और हाईकोर्ट तक, लेकिन आज तक उनको एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा मयस्सर नहीं हो पाया है, ताकि वे अपने प्रियजन का अंतिम संस्कार शांति के साथ कर सके।
रात का इंतजार
बाघमारा गांव भारत-बांग्लादेश सीम पर बसा हुआ है। यहां पर करीब पांच से छह हजार हिंदू लोग रहते हैं। लेकिन यहां पर आजादी से लेकर आज तक हिंदुओं का कोई श्मशान घाट नहीं है। इसलिए यहां के लोगों को अंतिम संस्कर के लिए रात का इंतजार करना पड़ता है। ताकि वे रात के अंधेरे में चोरी छिपे अपने प्रियजन का अंतिम संस्कार कर सके। गांव के लोग बताते हैं कि पहले जो हिंदुओं का श्मशान घाट था, आजादी के बाद वह बांग्लादेश के हिस्से में चली गई है। फिर भी लोग वहीं जाकर अंतिम संस्कार करते थे लेकिन समस्या 2014 में तब खड़ी हो गई जब उस जगह पर बांग्लादेश ने सड़क का निर्माण कर दिया। इससे वहां पर अब आवा-जाही ज्यादा होने से अब वहां पर अंतिम संस्कार करना मुश्किल हो गया।
आंखें भर आएंगी आपकी
जैसे-जैसे शाम रात की आगोश में समाती जाती है, धीरे-धीरे परिजन मृतक देह को नहलाना धुलाना शुरू करते हैं। वैसे तो हिंदुओं में शाम ढलने के बाद दाह संस्कार की मनाही है लेकिन यहां और कोई चारा नहीं है। किसी तरह से तरह से वे लोग नदी के किनारे पहुंचते हैं, देखते हैं कि नदीं उफान पर है। लेकिन जल्दी से जल्दी अंतिम संस्कार का काम को खत्म करना है, कहीं बांग्लादेशी सैनिक देख नहीं लें। उफनती नदी पर पहले केले के बड़े-बड़े थंबों को नीचे लगाया जाता है। जब वह पानी से ऊपर आ जाता है तो उस पर लकडियां लगाई जाती हैं। उसके बाद किसी तरह से अंतिम संस्कार का काम किया जाता है। कोई भी इस दृश्य को देखता है तो उसकी आंखें भर आती हैं।
हर बार स्थानीय लोगों ने किया विरोध
वहीं, दूसरे तरफ यहां भारतीय क्षेत्र में हिंदुओं को श्मशान घाट के लिए जमीन कई बार दी गई लेकिन हर बार कोई न कोई परेशानी सामने आई। जैसा कि लोगों ने बताया सरकार ने 2019 में श्मशान के लिए जंगल में जमीन दी, जिसका स्थानीय लोगों ने विरोध किया। इसके बाद 2022 में भारत-बांग्लादेश सीमा पर जमीन दिया गया, लेकिन बांग्लादेश ने इसका विरोध किया। इसके बाद फिर 2022 में ही म्यूनिसिपलटी गारवेज एरिया में जमीन दिया गया, जहां स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। तबसे लेकर जद्दोजहद चल रही है।
अगर दफनाओगे तो मिलेगी जीमान, जलाने नहीं देंगे
इस समस्या को लेकर यहां के हिंदू समाज ने कई बार राज्य प्रशासन और राज्य सरकार को आवेदन किया। प्रशासन ने भूमि भी मुहैया करवाई लेकिन जब श्मशान का निर्माण का समय आया तो यहाँ के स्थानीय ईसाई आदिवासी लोग विरोध में खड़े हो गए। नाम न बताने के शर्त पर कुछ लोगों ने बताया की मुख्यमंत्री ने भी यहाँ के श्मशान बनाने के लिए भूमि और राशी जारी की लेकिन स्थानीय आबादी के विरोध के कारण काम आगे नहीं बढ़ पाया। यहाँ के स्थानीय लोग उन्हें कहते है की अगर शव को दफनाओंगे तो हम तुम्हें भूमि देंगे लेकिन हम जलाने नहीं देंगे। क्योंकि इससे प्रदूषण होगा।
हम भगवान से प्रार्थना करते हैं हमारी मौत यहां नहीं हो
समस्या का समाधान नहीं होने तक हिंदुओं को बांग्लादेश की सिमसंग नदी के किनारे जो हिस्सा बांग्लादेश में पड़ता है, वहीं चोरी-छिपे रात के अंधेरे में जोखिम उठाकर अंतिम संस्कार कर रहे हैं। अगर बांग्लादेश की बीजीबी को इसकी भनक पड़ी तो वे गोली भी चला सकते हैं। अगर किसी दिन ऐसा हुआ तो एक बड़ा हादसा हो सकता है, क्योंकि अंतिम संस्कार करने काफी संख्या में लोग जाते हैं। इस तरह की परेशानी झेल रहे लोग कहते हैं, हम तो भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हमारी मौत यहां नहीं हो, जहां दो गज जमीन का टुकड़ा, अपने ही देश में मयस्सर ना हो।