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BJP और Congress के बीच क्या Rajasthan में Aam Aadmi Party अपनी जगह बना पाएगी ?

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अब जनता कांग्रेस-भाजपा से परेशान हो चुकी है
30%
'आप' की वजह से कांग्रेस और भाजपा में चिंता है
10%
केजरीवाल राजस्थान में कामयाब नहीं हो पाएंगे
90%
राजस्थान में भी 'आप' की सरकार बननी चाहिए
70%
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Vote / Poll

डेगाना विधानसभा क्षेत्र से आप किसको भाजपा का जिताऊँ प्रत्याशी मानते है ?

अजय सिंह किलक
56%
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अन्य
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कर्नाटक का मुख्यमंत्री किसे बनाया जा सकता है?

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सिद्देरमैया
67%
डीके शिवकुमार
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मल्लिकार्जुन खड़गे
13%
बता नहीं सकते
7%
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फिल्मों के विवादित होने के क्या कारण हैं?

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समुदाय विशेष को टारगेट करना
33%
राजनीतिक लाभ लेने के लिए
11%
फिल्मों को हिट करने के लिए
44%
कुछ बता नहीं सकते
11%
Total count : 9

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राजस्थान में नरसी सा भात! भांजे की शादी में 1.31 करोड़ का मायरा लेकर पहुंचा मामा, सोने-चांदी से भर दी बहन की गोद

 राजस्थान (Rajasthan) के नागौर (Nagaur) जिले का एक किसान भाई ने अपनी बहन के बेटे की शादी में दिल खोलकर मायरा (भात) भराई की, जिसे देखकर हर कोई दंग रह गया. राजस्थान में मायरा भरने की प्रथा को लेकर एक बार फिर नागौर की शादी पूरे प्रदेश ही नहीं देशभर में चर्चा में है. सोमवार को यहां एक किसान ने अपने भांजे की शादी में एक करोड़ 31 लाख रुपये का मायरा भरा है. 

इस मायरे में 21 लाख रुपये कैश, 28 तोले सोने की रकम, 75 लाख रुपये का प्लॉट, 15 लाख रुपये की कार और अन्य सामान शामिल था. दरअसल, ये मायरा (भात) भराई नागौर जिले से 55 किलोमीटर दूर खींवसर विधानसभा क्षेत्र के धारणवास गांव में की गई. जोधपुर के चटालिया गांव के एक किसान पुनाराम सियाग की तीन बेटियां और एक बेटा हनुमान राम सियाग है. उनकी सबसे बड़ी बेटी मंजू देवी की शादी धरणावास के रहने वाले रामकरण मुंडेल के साथ हुई थी. 

मामा ने भरा भांजे का मायरा
मंजू देवी के बेटे जितेंद्र की शादी सोमवार को नागड़ी गांव की पूजा से हुई है. बहन के बेटे की शादी में भाई हनुमान राम सियाग ने गोटेदार चुनरी ओढ़ाकर करीब एक करोड़ 31 लाख रुपये का मायरा (भात) की रश्म निभाई. हनुमान राम सियाग अपनी बहन के बेटे की शादी में मायरा भरने के लिए लंबे समय से तैयारी कर रहा था. हनुमान राम अपने साथ 600 रिश्तेदारों और ग्रामीणों को गाड़ियों का काफिला लेकर अपने भांजे की मायरा भराई के लिए पहुंचा.

क्या होती है मायरा भराई?
इस मायरे की रश्म को देखने आस-पास के गांवों के लोग भी भारी तादाद में पहुंचे थे. बहन के बच्चों की शादी होने पर ननिहाल पक्ष की ओर से मायरा भरा जाता है. इसे आम बोलचाल की भाषा में भात भराई भी कहते हैं.  इस रश्म में ननिहाल पक्ष की ओर से बहन के बच्चों के लिए कपड़े, गहने, रुपये और अन्य सामान देने की परंपरा है. इसमें बहन के ससुराल पक्ष के लोगों के लिए कपड़े और जेवर उपहार के रूप में दिए जाते हैं.

 

नरसी का भात है बहुत ही प्रचलित
बुजुर्गों का मानना है कि मायरा (भात) भराई को राजस्थानी संस्कृति में बहन, बेटी के घर में आयोजित होने वाले सबसे बड़े समारोह पर आर्थिक संबल देने से जोड़ा गया है. धार्मिक कथा के अनुसार, नानीबाई का मायरा बहुत ही प्रचलित है. हुमायूं के शासनकाल में गुजरात के जूनागढ़ में नरसी का जन्म हुआ था. वो जन्म से गूंगे बहरे थे, लेकिन फिर एक संत की कृपा से नरसी की आवाज वापस आ गई और उनका बहरापन भी ठीक हो गया. नरसी के एक बेटा सांवल और एक बेटी नानीबाई थी.

समय बीतता गया. एक दिन नानीबाई का विवाह अंजार नगर में हो गया. उस समय उनके बेटे सांवल की मौत हो गई थी. नरसी भगवान कृष्ण के अटूट भक्त थे. वह उन्हीं की भक्ति में लगे हुए थे. अपना सब कुछ उन्होंने भगवान की भक्ति में लुटा दिया. रोजाना की भक्ति के बाद वह भगवान कृष्ण से कहते थे कि 'मारी हुंडी स्वीकारो सेठ सांवरा.' वो अपने भक्ति की पूंजी को भगवान के पास जमा कर रहे थे. 

धीरे-धीरे नरसी ने सामाजिक मोह भी त्याग दिया और भगवान के पास अपनी भक्ति की हुंडी जमा करते-करते संत बन गए. उधर नानीबाई के घर में बेटी का जन्म हुआ. बेटी विवाह लायक हो गई थी. दोहिती के विवाह पर ननिहाल की तरफ से भात भरने की रस्म के चलते नरसी को सूचित किया गया. नरसी के पास देने को कुछ भी नहीं था. उसने अपने भाई बंधु से मदद की गुहार लगाई, लेकिन मदद तो दूर की बात कोई भी नरसी के साथ चलने तक को तैयार नहीं था.

भगवान कृषण ने भरा था मायरा
नरसी की भक्ति की जो हुंडी थी, वो भी उन्होंने भगवान के पास जमा रखी हुई थी. अंत में टूटी-फूटी बैलगाड़ी लेकर नरसी खुद ही नानीबाई के ससुराल के लिए निकल पड़े. कथा के अनुसार बताया जाता है कि, भक्ति की हुंडी को चुकाने के लिए भगवान कृष्णा नरसी का बेटे संवाल बनकर खुद भात भरने पहुंचे थे. आंजन नगर में उन्होंने नानीबाई का भाई बन ऐसा मायरा (भात)  भरा की सब देखते रह गए. उसी दिन से कहा जाने लगा की सेठ तो एक ही है और मायरा हो तो नानीबाई जैसा. इसके माध्यम से भगवान कृष्ण ने जगत को निर्बल को संबल देने का संदेश दिया है. इसी संदेश के चलते आज भी मायरे की ये रस्म निभाई जाती है.

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