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BJP और Congress के बीच क्या Rajasthan में Aam Aadmi Party अपनी जगह बना पाएगी ?

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अब जनता कांग्रेस-भाजपा से परेशान हो चुकी है
30%
'आप' की वजह से कांग्रेस और भाजपा में चिंता है
10%
केजरीवाल राजस्थान में कामयाब नहीं हो पाएंगे
90%
राजस्थान में भी 'आप' की सरकार बननी चाहिए
70%
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Vote / Poll

डेगाना विधानसभा क्षेत्र से आप किसको भाजपा का जिताऊँ प्रत्याशी मानते है ?

अजय सिंह किलक
56%
शिव देशवाल
26%
अन्य
18%
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Vote / Poll

कर्नाटक का मुख्यमंत्री किसे बनाया जा सकता है?

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सिद्देरमैया
65%
डीके शिवकुमार
18%
मल्लिकार्जुन खड़गे
12%
बता नहीं सकते
6%
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फिल्मों के विवादित होने के क्या कारण हैं?

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समुदाय विशेष को टारगेट करना
36%
राजनीतिक लाभ लेने के लिए
9%
फिल्मों को हिट करने के लिए
45%
कुछ बता नहीं सकते
9%
Total count : 11

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पुरानी पेंशन पर कितना असर करेगा गहलोत का ये दांव, क्या राजस्थान में OPS पर फंसेगा सियासी पेंच?

पुरानी पेंशन पर कितना असर करेगा गहलोत का ये दांव, क्या राजस्थान में OPS पर फंसेगा सियासी पेंच?
Pooja Parmar
November 28, 2023

राजस्थान के विधानसभा चुनाव में मतदान की तारीख नजदीक आ रही है। राज्य में 25 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। कांग्रेस पार्टी ने अपनी सात चुनावी गारंटियों में 'पुरानी पेंशन स्कीम' को कानूनी गारंटी का दर्जा, इसे पहले नंबर पर रखा है। कांग्रेस पार्टी की महासचिव एवं स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी, अपनी रैलियों में 'ओपीएस' के मुद्दे को जबरदस्त तरीके से उठा रही हैं। राजस्थान चुनाव में 'पुरानी पेंशन' को लेकर मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, खासे आश्वस्त हैं। उन्होंने अब ओपीएस को कानूनी दर्जा दिए जाने का दांव चल दिया है। हालांकि उनके इस दांव में सियासी पेंच फंस सकता है। एनपीएस का पैसा केंद्र सरकार के पास जमा है। भले ही वह पैसा कर्मियों का है, लेकिन बिना केंद्र की सहमति के उसे राज्य सरकार को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। कांग्रेस की चुनावी गारंटी में शामिल, ओपीएस को अगर राज्य में कानूनी दर्जा मिल भी गया तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि किसी दूसरे दल की सरकार उस कानून को निरस्त नहीं करेगी। ऐसे में कानूनी दर्जे की खास अहमियत नहीं रह जाएगी।

 
 

कानूनी दर्जे का मतलब, एक भरोसा है

अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष तेज सिंह राठौड़ ने सोमवार को बताया, देखिये ये एक भरोसे की बात है। राजस्थान सरकार, अपने कर्मियों को यह भरोसा दे रही है कि उन्होंने 'ओपीएस' को महज एक चुनावी गारंटी तक सीमित नहीं रखा है, बल्कि अपनी तरफ से उसे कानूनी दर्जा भी प्रदान कर दिया है। अब यह दर्जा तो एक प्रदेश में है। ऐसा संभव है कि किसी दूसरी पार्टी की सरकार, इस दर्जे को वापस भी ले सकती है। कानून में बदलाव कर सकती है। यहां पर देखने वाली बात ये है कि राजस्थान की मौजूदा सरकार ने ओपीएस लागू किया है और अब कांग्रेस पार्टी ने अपनी चुनावी गारंटी में भी उसे कानूनी दर्जा देने की बात कही है। दूसरी तरफ भाजपा के घोषणा पत्र में 'ओपीएस' का जिक्र तक नहीं है। ये बात भी ठीक है कि कर्मियों का एनपीएस में जमा पैसा, भारत सरकार के नियंत्रण में है। 'पेंशन फंड एंड रेगुलेटरी अथारिटी' (पीएफआरडीए) में जमा पैसा, केंद्र की मर्जी के बिना राज्यों को नहीं दिया जा सकता। केंद्र सरकार, इस बाबत पहले ही इनकार कर चुकी है।

 
 

आ सकते हैं चौंकाने वाले चुनावी नतीजे

बतौर तेज सिंह राठौड़, भारत सरकार को इस संबंध में सहयोगात्मक रवैया अपनाना चाहिए। केंद्र सरकार ने जब एनपीएस लागू किया तो उससे पहले कर्मियों से नहीं पूछा था। अब सरकार को चाहिए कि वह ओपीएस व एनपीएस का विकल्प, कर्मियों को दे। कर्मचारी खुद तय करें कि उन्हें ओपीएस बहाली चाहिए या एनपीएस में रहना है। साथ ही पीएफआरडीए के नियमों में बदलाव किया जाए। राजस्थान में ओपीएस का असर, चुनाव में देखने को मिलेगा। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु कहते हैं, पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले होंगे। खासतौर पर, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में सरकारी कर्मियों का वोट, सत्ता समीकरण बिगाड़ने के लिए काफी है। राजस्थान में सरकारी कर्मचारी, अगर पूरी तरह से ओपीएस के समर्थन में मतदान करते हैं, तो चुनावी नतीजे चौंकाने वाले आ सकते हैं। राजस्थान में नौ से दस लाख सर्विंग/रिटायर्ड कर्मचारी हैं। उनके परिवार भी हैं। यह संख्या, विधानसभा चुनाव में सत्ता के समीकरण को बनाने और बिगाड़ने के लिए काफी है।

केंद्र के सहयोग के बिना आगे की राह मुश्किल

राजस्थान में कांग्रेस पार्टी ने गारंटी दी है कि दूसरी बार सरकार बनते ही कर्मचारियों के लिए 'ओपीएस' को कानून के जरिए पक्का कर दिया जाएगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा, तो वेट नहीं, वोट कीजिए और पोस्टल बैलेट से ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) को लॉक कीजिए। केंद्र और राज्यों के सरकारी कर्मचारी संगठनों के नेता भी कह चुके हैं कि ओपीएस का विरोध कर भाजपा, सियासत में एक बड़ा जोखिम ले रही है। हालांकि इस मामले में राज्य सरकारें, बिना केंद्र के सहयोग से लंबे समय तक आगे नहीं चल सकती हैं। एनपीएस का पैसा 'पेंशन फंड एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी' (पीएफआरडीए) में जमा है। यह केंद्र सरकार के नियंत्रण में है। केंद्र की मर्जी के बिना, एनपीएस का पैसा राज्यों को नहीं दिया जा सकता। केंद्र सरकार, इस बाबत साफ इनकार कर चुकी है।

पीएफआरडीए एक्ट में संशोधन के लिए हुई रैली

'पुरानी पेंशन' बहाली के लिए तीन नवंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में सरकारी कर्मियों ने चेतावनी रैली आयोजित की थी। कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लाइज एंड वर्कर्स के बैनर तले आयोजित हुई इस रैली में ऑल इंडिया स्टेट गवर्नमेंट एम्प्लाइज फेडरेशन सहित करीब 50 कर्मचारी संगठनों ने हिस्सा लिया था। कर्मियों का कहना था कि केंद्र सरकार को ओपीएस सहित दूसरी मांगों पर सकारात्मक विचार करना होगा। अगर केंद्र सरकार, एनपीएस की समाप्ति और ओपीएस की बहाली जैसी अन्य मागें नहीं मानती हैं, तो कर्मचारी, अनिश्चितकालीन हड़ताल जैसा कठोर कदम भी उठा सकते हैं। कर्मियों की मुख्य मांगों में पीएफआरडीए एक्ट में संशोधन करना या उसे पूरी तरह खत्म करना भी शामिल था। कर्मियों का कहना था कि सरकार, पीएफआरडीए को वापस ले। जब तक इस एक्ट को खत्म नहीं किया जाता, तब तक विभिन्न राज्यों में लागू हो रही ओपीएस की राह मुश्किल ही बनी रहेगी। वजह, एनपीएस के तहत कर्मियों का जो पैसा कटता है, वह पीएफआरडीए के पास जमा है। केंद्र सरकार, कह चुकी है कि वह पैसा राज्यों को नहीं लौटाया जाएगा। ऐसे में जहां भी ओपीएस लागू हो रहा है, वहां पर सरकार बदलते ही दोबारा से एनपीएस लागू किया जा सकता है। ऐसे में राज्यों द्वारा की जा रही ओपीएस बहाली में कई पेंच फंसे रहेंगे।

राज्यों को करना पड़ेगा आर्थिक परेशानी का सामना

जो राज्य, पुरानी पेंशन योजना को लागू करने का एलान कर रहे हैं, उन्हें आने वाले दिनों में आर्थिक तौर पर परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। वजह, केंद्र सरकार ने कई नियमों में बदलाव किया है। संभव है कि जो प्रदेश, ओपीएस लागू कर रहे हैं, उनके लिए केंद्र से अतिरिक्त कर्ज मिलने की राह मुश्किल हो जाएगी। एनपीएस के तहत राज्य सरकारें, अपना और कर्मचारी की सैलरी का एक तय हिस्सा पेंशन फंडिंग रेगुलेटरी डेवलेपमेंट अथॉरिटी को देती हैं। इसे बाद में कर्मचारी को पेंशन के रूप में दिया जाता है। इसके तहत पेंशन फंडिंग एडजस्टमेंट के तहत राज्य सरकारें, केंद्र से अतिरिक्त कर्ज ले सकती हैं। यह अतिरिक्त कर्ज राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का तीन फीसदी तक हो सकता है। पुरानी पेंशन योजना को दोबारा से लागू करने वाली राज्य सरकारों और केंद्र के बीच ठन गई है। जिन गैर-भाजपा शासित राज्यों ने अपने कर्मियों को पुरानी पेंशन के दायरे में लाने की घोषणा की है, उन्हें 'एनपीएस' में जमा कर्मियों का पैसा वापस नहीं मिलेगा। केंद्र ने साफ कर दिया है कि यह पैसा 'पेंशन फंड एंड रेगुलेटरी अथारिटी' (पीएफआरडीए) के पास जमा है। नई पेंशन योजना 'एनपीएस' के अंतर्गत केंद्रीय मद में जमा यह पैसा राज्यों को नहीं दिया जा सकता। वह पैसा केवल उन कर्मचारियों के पास जाएगा, जो इसका योगदान कर रहे हैं।

कोई मैकेनिज्म तो बनाना ही पड़ेगा

छत्तीसगढ़ और राजस्थान सरकार ने पीएफआरडीए से पैसा वापस लेने के लिए केंद्र सरकार से आग्रह किया था। छत्तीसगढ़ में सरकारी कर्मियों ने पीएफआरडीए में 17 हजार करोड़ रुपये से अधिक राशि जमा कराई है। इस राशि की वापसी के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, पीएम मोदी को पत्र लिख चुके हैं। भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ के महासचिव मुकेश कुमार के अनुसार, एनपीएस का पैसा तो केंद्र सरकार के नियंत्रण में है। अगर वह पैसा वापस नहीं आता है, तो राज्य सरकारों के खजाने पर इसका अतिरिक्त भार पड़ेगा। सरकारी खाते में उस पैसे का डिस्पोजल क्या होगा, यह एक अहम सवाल है। एनपीएस में जमा पैसा तो मार्केट में लगा है, उसे कैसे वापस लाएंगे, इसका कोई मैकेनिज्म तो बनाना ही पड़ेगा। केंद्र सरकार एनपीएस का पैसा दे सकती है, बशर्ते कि इसके लिए पीएफआरडीए एक्ट में संशोधन करना पड़ेगा। इस बाबत केंद्र सरकार को तैयार रहना चाहिए।

पुरानी पेंशन पर कितना असर करेगा गहलोत का ये दांव, क्या राजस्थान में OPS पर फंसेगा सियासी पेंच?

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